*चिंताजनक: देश की 80% नदियां एंटीबायोटिक दवाओं से प्रदूषित, 31.5 करोड़ भारतीयों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा प्रभाव*
*नई दिल्ली*
*दीपक कुमार शर्मा की रिपोर्ट*
भारत सहित कई विकासशील देशों में एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग और अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन ने नदियों और अन्य जल स्रोतों को गंभीर रूप से प्रदूषित कर दिया है। एंटीबायोटिक दवाओं के कारण भारत की नदियों की सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है।
एक नई वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक देश की लगभग 80 फीसदी नदी प्रणालियां एंटीबायोटिक दवाओं के प्रदूषण से प्रभावित हैं, जो न केवल पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डाल रही हैं बल्कि लाखों लोगों की सेहत पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
यह चिंताजनक निष्कर्ष कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में सामने आया है, जिसे प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नेक्सस में प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट का आकलन है कि भारत में लगभग 31.5 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन नदियों के संपर्क में आ रहे हैं जो एंटीबायोटिक दवाओं से दूषित हैं। खास बात यह है कि इन दवाओं में सेफिक्सिम प्रमुख है, जो श्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज में दी जाती है, और नदियों में सबसे अधिक पाए जाने वाली एंटीबायोटिक के रूप में चिन्हित हुई है। इसके अलावा ऐमोक्सिसिलिन और सेफ्ट्रियाक्सोन जैसी दवाएं भी नदियों में पाई गईं हैं।
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र
भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, वियतनाम और इथियोपिया जैसे देश इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित बताए गए हैं। इन क्षेत्रों में जल का प्रवाह अक्सर कम रहता है। इन देशों में चिकित्सकीय सलाह के बिना भी एंटीबायोटिक दवाएं आसानी से उपलब्ध होती हैं, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है। इन देशों में फार्मास्युटिकल उद्योगों और अस्पतालों से भारी मात्रा में बिना उपचारित अपशिष्ट का जल स्रोतों में उत्सर्जन किया जाता है।
*8500 टन एंटीबायोटिक नदियों में पहुंच रहा*
अध्ययन में 877 वैश्विक स्थलों पर 21 प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं की उपस्थिति को मापा गया और एक व्यापक ‘रिवर एटलस’ तैयार किया गया, जिसमें 3.6 करोड़ किलोमीटर लंबी नदियों के 84 लाख से ज्यादा खंड शामिल हैं। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि करीब 60 लाख किलोमीटर लंबी नदियों में, खासकर जब पानी का स्तर कम होता है, एंटीबायोटिक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि वह पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाती है।
भारत में 38 लाख किमी लंबी नदियों में एंटीबायोटिक स्तर गंभीर रूप से उच्च पाया गया। 2012 से 2015 के बीच 40 प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं की 29,200 टन वार्षिक खपत का अनुमान लगाया गया, जिसमें से 8,500 टन नदियों व धाराओं में पहुंच रहा है।


